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जली कटी

जली कटी

 "ये क्या पिता जी। आपकी थाली में जली रोटी और सब्ज़ी भी कल की है। मैं अभी भाभी से बात करती हूँ"।


"मानसी। मुझे ऐसी ही रोटी पसंद है। और कल की सब्ज़ी मुझे अच्छी लगी थी। इसलिए मैंने ही बहू से कहा था, कल की सब्ज़ी देने को। वह तो रम्या को देने जा रही थी, शेखर ने आँसू छिपाते हुए कहा।


"पिता जी आपको तो सही से झूठ बोलना भी नहीं आता। पच्चीस साल आपके साथ रही हूँ।क्या नहीं पता, आपको तो ताज़ी और नरम रोटी ही पसंद है। आपने तो जब तक मम्मी रही, उन्होंने कभी भी न आपको बासी खाना दिया न मुझको और भैया को"।

"बिटिया। तुम तो अपने घर चली जाओगी। मुझे तो यहीं रहना है। बहु की जली-कटी बातें सुनने से तो अच्छा है, जली रोटी चुपचाप खा लूँ। शेखर ने धीरे से कहा।





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