ऑफिस में ढेर सारी फाइलों के बीच उलझा कल्पेश पत्नी की कॉल पर खीज गया,
‛हैलो!...'
‛क्या है अनीता? जल्दी बोलो।’
‛सुनिए वो..वो..फेसबुक पर..एक वीडियो..’
‛ये कोई वक़्त है इन सब बातों का? जरूरी मीटिंग शुरू हो रही है। अभी रखो..बाद में बात करता हूँ।’
कल्पेश ने फोन साइलेंट कर एक ओर रख दिया। मीटिंग खत्म होते-होते शाम हो गई। लंच टाइम पहले ही निकल चुका था कमरे से बाहर आकर उसने चाय मंगवाने के लिए हॉल में नज़र दौड़ाई मगर कुछ अजीब सा महसूस हुआ..कई सहकर्मी मुस्कुरा रहे थे और कई आपस में बतियाते हुए उसे ही देख रहे थे।
कल्पेश के अपनी मेज पर आते ही मिसेज़ वाणी पास आईं,
‛ओह कल्पेश जी, ये वायरल रील देखी आपने..बाप रे इतने व्यूज़!!’
‛काम के वक़्त आप रील देख रहीं?’
मिसेज़ वाणी ने हौले से बालों को झटका,
‛देख ही तो रही हूं बनाती थोड़े हूँ! छोड़िए!’
फिर झुककर अपना आधा वजन मेज पर डालते हुए हाथ में पकड़ा मोबाइल ठीक उसके चेहरे के सामने नचाया।
‛देखिए तो सही! जानी-पहचानी सी..क्या नाम है लड़की का..मस्त सा..उम्म..क्रेज़ी डेज़ी!’
कल्पेश सन्न रह गया..उसकी बेटी! इस तरह गीले कपड़ों में!..हाँ याद आया..ये कल सुबह की ही तो बात है जब कृतिका वीडियो बना रही थी..फिर नहाने गई थी तब भी उसके तेज-तेज गाने की आवाज़ आ रही थी, उसकी बकबक पर कल्पेश ने पत्नी से मज़ाक भी किया था,
‛अनीता! ये क्या नया शौक चढ़ गया है इसे! तुम माँ-बेटी इन छुट्टियों में जाने क्या खिचड़ी पकाती रहती हो?’
‛सिर्फ पकती नहीं परोसी भी जाती है..सोशल मीडिया पर। जब से आप ऑफिस में बिजी हो गए सारी जिम्मेदारी हम पर ही आ गई है ना! घूम घूमकर हर चीज़ रिकॉर्ड करना फिर वीडियो बनाकर फेसबुक पर डालना आप ही ने शुरू किया था। ये चस्का आप ही से लगा सबको।’
‛बस-बस अपने तक रखो अब ये शौक..मुझे ऑफिस जाना है।’
वो खुद ऑफिस चला जाता मगर हर रोज़ पीछे छोड़ जाता सोशल मीडिया की चकाचौंध में चुंधियाई अति उत्साहित पत्नी और इसके पीछे के अंधेरे खतरों से अनजान अभी स्कूल के आखिरी सालों से गुजरती बेटी कृतिका।
अब तक मिसेज़ वाणी अपना फर्ज निपटाकर दूसरे मेज की ओर खिसक चुकी थीं।
कल्पेश ने दोनों हाथों से सिर थाम लिया। सोशल मीडिया एक खुला प्लेटफॉर्म है जहाँ हर कदम सोच-समझकर रखना पड़ता है ये जानते हुए भी कैसे इतनी लापरवाही हो गई। शुरुआत उसी ने की थी जो अब ज़हर बनकर फैल रहा था मगर कृतिका..क्रेज़ी डेज़ी नाम से ऐसे रील कब से बनाने लगी उसे पता ही नहीं था। बेटी का वो भीगा झीना सा दृश्य..ना जाने कितने लोग देख रहे होंगे ये रील..उसे उबकाई आई फिर अचानक याद आया सुबह अनीता परेशान सी किसी वीडियो के बारे में बात करना चाहती थी..शायद यही..।
तभी पीछे से किसी की आवाज़ आई,
‛कल्पेश जी! भई क्या बात है! यहां भी प्रोमोशन की उम्मीद है और सोशल मीडिया से भी कमाई हो रही होगी ना! आपके दोनों हाथों में लड्डू!’
सभी ठठाकर हंस पड़े। किसी ने धीरे से उछाला,
‛बिटिया काफी बड़ी हो गई है। क्या रील बनाती..’
आगे सुनने की हिम्मत नहीं थी उसमें। सब फाइलें दराज में रखकर ऑफिस बंद होने से पहले ही कल्पेश उठ गया। बहुत काम बाकी था घर पर। नादान कृतिका को संभालना उसी की जिम्मेदारी है। अनीता को समझना होगा हर आज़ादी की अपनी एक सीमा है एक मर्यादा है। इन रीलों ने घर-बाहर जो बिगाड़ा था वो अब उन दोनों को मिलकर ठीक करना होगा।
रवाना होने से पहले उसने अनीता को फोन लगाया,
‛हैलो अनीता! कृतिका ठीक है ना! सुनो जरूरी बात! फिलहाल तुम दोनों अपने फ़ोन में शेयर-कमेंट ऑप्शन बंद कर दो..घबराओ मत मैं घर आ रहा हूँ सब ठीक हो जाएगा।’
कल्पेश ने फोन स्क्रॉल करते हुए एक नज़र दौड़ाई..अपने वीडियोज़ कमेंट्स लाइक की भरमार आज उसे बेमानी लग रही थी। इन सब के पीछे कहीं छूट चुका था उनका सुकून..जैसे भूल ही गए थे वे इस बाहरी दिखावे से दूर सिर्फ अपने लिए जीना..हम्म इस भीड़ को मोबाइल से ही नहीं ज़िंदगी से भी डिलीट करना होगा।
उसने मोबाइल वापस जेब में रख लिया।
अब सिर्फ जरूरी काम के लिए फ़ोन इस्तेमाल करूँगा और रील्स..तौबा-तौबा।
0 Comments